ऐ बारिश ज़रा जम के बरस
छिपा है सैलाब जो अंदर, वो आज टपकेगा बनकर खारा पानी।
बहा ले जा संग अपने मेरे एहसासों की ये दुनिया,
लिखूँ मैं नई ज़िन्दगी फिर से, और शुरू करूँ एक नई कहानी।
धुलेंगी आज यादें कुछ पुरानी, उन्हें धुलने दे ज़रा।
ना रोक इन बादलों को, तू बरसने दे ज़रा।
बड़ी गहरी जड़ें जमाए बैठे हैं, मेरे दिल में कुछ एहसास।
तू बना तूफान सा कोई मंज़र, और इन्हें उखड़ने दे ज़रा।
फिसलने दे इन बूँदों को मेरे तन पर, पहुँचने दे रूह की गहराई तक।
मैं खड़ा हूँ बाँहें फैलाये भीगने को तुझमें, तू सराबोर कर दे मुझे और भिगो डाल मेरी परछाईं तक।
मैं तुझमें घुलने को तैयार बैठा हूँ,
बस तू यूँ ही जारी रहना मेरे एहसासों की भरपाई तक।
यूँ टुकड़ों में ना बरस, ऐसे तो मैं भी आधा-अधूरा सा हूँ।
कभी ऊँचा उड़ता इन बादलों में, तो कभी गिरा-गिरा सा हूँ।
आज तुझे अपने आगोश में समेट लूँ जी भर के,
तू यूँ ना तरसा मुझे, मैं खुद इस सूनेपन से हारा-हारा सा हूँ।
आज तू कुछ ऐसे बरस, कि मैं खुद को भूल जाऊँ।
सराबोर कर दूँ खुद को तुझमें, और तेरी बाँहों में झूल जाऊँ।
ना रहे मुझे होश इस दिन और रात का,
मैं खुल-खुल कर बिखरुं, और बिखरता चला जाऊँ।
इन बूँदों की छुअन तन पे, एक प्यारा एहसास जगाती है।
ताज़ा होती हैं कुछ पुरानी यादें, कुछ नए अरमां जगाती है।
मैं समझ नहीं पाता ये खुशी है या गम ऐ बारिश,
तू आती है तो मेरी ये दुनिया, पीछे लौट सी जाती है।
यूँ तो मौसम और भी हैं यहाँ, मगर तुझमें एक अजीब सी कशिश महसूस होती है।
जब भीगता हूँ तुझमें यूँ बाँहें फैलाये, तो एक मुकम्मल खुशी महसूस होती है।
दिल करता है यूँ ही रोक लूँ तुझे और बरसने दूँ,
तेरे बरसने से मेरी हर अधूरी खुशी, मुझे कुछ पूरी महसूस होती है।।
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