ऐ बारिश ज़रा जम के बरस
ऐ बारिश जरा जम के बरस, मिलने दे इस पानी में मेरी आँखों का ये पानी। छिपा है सैलाब जो अंदर, वो आज टपकेगा बनकर खारा पानी। बहा ले जा संग अपने मेरे एहसासों की ये दुनिया, लिखूँ मैं नई ज़िन्दगी फिर से, और शुरू करूँ एक नई कहानी। धुलेंगी आज यादें कुछ पुरानी, उन्हें धुलने दे ज़रा। ना रोक इन बादलों को, तू बरसने दे ज़रा। बड़ी गहरी जड़ें जमाए बैठे हैं, मेरे दिल में कुछ एहसास। तू बना तूफान सा कोई मंज़र, और इन्हें उखड़ने दे ज़रा। फिसलने दे इन बूँदों को मेरे तन पर, पहुँचने दे रूह की गहराई तक। मैं खड़ा हूँ बाँहें फैलाये भीगने को तुझमें, तू सराबोर कर दे मुझे और भिगो डाल मेरी परछाईं तक। मैं तुझमें घुलने को तैयार बैठा हूँ, बस तू यूँ ही जारी रहना मेरे एहसासों की भरपाई तक। यूँ टुकड़ों में ना बरस, ऐसे तो मैं भी आधा-अधूरा सा हूँ। कभी ऊँचा उड़ता इन बादलों में, तो कभी गिरा-गिरा सा हूँ। आज तुझे अपने आगोश में समेट लूँ जी भर के, तू यूँ ना तरसा मुझे, मैं खुद इस सूनेपन से हारा-हारा सा हूँ। आज तू कुछ ऐसे बरस, कि मैं खुद को भूल जाऊँ। सराबोर कर दूँ खुद को तुझमें, और तेरी बाँहों में ...