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Showing posts from September, 2018

ऐ बारिश ज़रा जम के बरस

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ऐ बारिश जरा जम के बरस, मिलने दे इस पानी में मेरी आँखों का ये पानी। छिपा है सैलाब जो अंदर, वो आज टपकेगा बनकर खारा पानी। बहा ले जा संग अपने मेरे एहसासों की ये दुनिया, लिखूँ मैं नई ज़िन्दगी फिर से, और शुरू करूँ एक नई कहानी। धुलेंगी आज यादें कुछ पुरानी, उन्हें धुलने दे ज़रा। ना रोक इन बादलों को, तू बरसने दे ज़रा। बड़ी गहरी जड़ें जमाए बैठे हैं, मेरे दिल में कुछ एहसास। तू बना तूफान सा कोई मंज़र, और इन्हें उखड़ने दे ज़रा। फिसलने दे इन बूँदों को मेरे तन पर, पहुँचने दे रूह की गहराई तक। मैं खड़ा हूँ बाँहें फैलाये भीगने को तुझमें, तू सराबोर कर दे मुझे और भिगो डाल मेरी परछाईं तक। मैं तुझमें घुलने को तैयार बैठा हूँ, बस तू यूँ ही जारी रहना मेरे एहसासों की भरपाई तक। यूँ टुकड़ों में ना बरस, ऐसे तो मैं भी आधा-अधूरा सा हूँ। कभी ऊँचा उड़ता इन बादलों में, तो कभी गिरा-गिरा सा हूँ। आज तुझे अपने आगोश में समेट लूँ जी भर के, तू यूँ ना तरसा मुझे, मैं खुद इस सूनेपन से हारा-हारा सा हूँ। आज तू कुछ ऐसे बरस, कि मैं खुद को भूल जाऊँ। सराबोर कर दूँ खुद को तुझमें, और तेरी बाँहों में ...

ऐ वक़्त थम जा ज़रा

ऐ वक़्त थम जा जरा साँस तो लेने दे, हूँ घायल तेरी मार से जरा संभलने का मौक़ा तो दे । यूँ ही हार जाना फितरत में नहीं मेरी, पर हौसला समेटने का मौक़ा तो दे । ऐसा नहीं कि मैंने तेरी कद्र ना की, मैं उलझा रहा बस तेरे दिए सवालों में। ढूँढता रहा जवाब मैं बड़ी शिद्दत से, घूमता रहा ख़यालों में। कुछ सवाल सुलझे तो कुछ अनसुलझे हैं अभी। लगता है तेरा कहर कुछ बाकी है अभी। बेशक तू क्रूरता की हद पार कर दे, मगर याद रखना मुझमें कुछ जान बाकी है अभी। तेरे ज़ुल्मो सितम से भी कुछ तो जाना मैंने, कौन अपना है कौन पराया ये पहचाना मैंने। चला था कुछ अरमां लिए मैं दिल में उस भीड़ से अलग। सफर भी मुश्किल था मेरा, थीं मंजिलें मेरी सबसे अलग। तूने ऐसी करवट बदली मैं रह गया पीछे, ना पा सका मुकाम अपना जो सोचा था सबसे अलग। इस कदर इन अंधेरो में खो जाऊँगा ये तो मैंने सोचा ना था। ढलेगा दिन और ढलता ही रहेगा ये तो मैंने सोचा ना था। जारी है तेरा सितम आज भी मुझपे, और ये यूँ जारी रहेगा ये तो मैंने सोचा ना था। वक्त बेवक्त ही सही ऐ वक्त, कभी मेरी भी सुना कर। तू है तो मेरे आस पास लेकिन है कहाँ, परेशान...