मैं अकेला हूँ और अकेला चला जा रहा हूँ।
मैं अकेला हूँ और अकेला चला जा रहा हूँ।
था कारवाँ कभी साथ मेरे, पर आज कोई नहीं।
थी जो महफ़िल कभी रोशन मुझसे, आज उसमें मैं नहीं।
बने हालात कुछ ऐसे, कि खुद में सिमटने को मजबूर हुआ जा रहा हूँ।
मैं अकेला हूँ और अकेला चला जा रहा हूँ।।
वक्त का तकाज़ा था, कि जो अपने थे वो बिछड़ गए।
मैं इस कोशिश में था कि गलती की गुंजाइश ना हो, और वो गलती करके निकल गए।
मैं दूर खड़ा बस देखता रहा, वक्त के साथ हर कोई बदलता रहा।
मैं आज भी वहीं हूँ, और लोगों को बदलते देख यूँ मुस्कुराता जा रहा हूँ।
मैं अकेला हूँ और अकेला चला जा रहा हूँ।।
आज थोड़ा बेबस, थोड़ा मजबूर हूँ मैं।
अपनी मंजिल की तलाश में, खुद से ही बहुत दूर हूँ मैं।
जाने कब खत्म होगी ये तलाश, मेरे मुकाम की।
एक धुंधली सी उम्मीद लिए, मैं बस पिघलता जा रहा हूँ।
मैं अकेला हूँ और अकेला चला जा रहा हूँ।।
आज कुछ कमजोर हूँ, पर लाचार नहीं।
बेशक मुझे जल्दी है सपनों की, पर किसी गुनाह का मैं तलबगार नहीं।
रफ़्ता रफ़्ता ही सही , कभी तो आएगा वो खुशी का मन्ज़र।
अपनी ख्वाहिशों को समेटे, बस चलता जा रहा हूँ।
मैं अकेला हूँ और अकेला चला जा रहा हूँ।।
मैं खुश हूँ तो अकेला हूँ, दुख में भी अकेला हूँ।
किसी रंजोगम का मुझपे असर नहीं, मैं हर मौसम में अकेला हूँ।
मेरा हर एहसास डूबता जा रहा है, इस अकेलेपन में।
आधी अधूरी जिंदगी लिए, बस जिये जा रहा हूँ।
मैं अकेला हूँ और अकेला चला जा रहा हूँ।।
दिन का हर पहर भी आकर, खाली लौट जाता है।
आज वो वक्त भी बेबस है मेरे आगे, जो सबको रुलाता है।
अब क्या बताऊँ उस वक्त को, मैं अपनी कहानी।
क्या समझाऊँ कि मैं बस बेमतलब सा जिए जा रहा हूँ।
मैं अकेला हूँ और अकेला चला जा रहा हूँ।।
मुसीबतें भी घिरकर आयी हैं, मुझे यूँ अकेला देखकर।
पर मैं भी पहाड़ सा अटल खड़ा हूँ आज, अपना सब हौसला समेटकर।
क्या हुआ जो ये वक्त भी आज, चोट पर चोट किये जा रहा है।
मैं भी अडिग हूँ अपने रास्ते पर, और अपने सपनों को संग लिए जा रहा हूँ।
हाँ मैं अकेला हूँ और अकेला चला जा रहा हूँ।।
आपकी लिखी रचना "पांच लिंकों का आनन्द में" शनिवार 22 मई 2021 को लिंक की जाएगी ....
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