आज फिर से तू मुझे बिखरने दे
आज फिर से तू मुझे बिखरने दे। पत्ता-पत्ता टूटकर तू आज गिरने दे। मैं कल फिर आऊँगा, हर तिनका उठाकर आशियाना बनाऊंगा, तू बस थोड़ा सा मुझे सँभलने दे।। मैं टूटकर बिखरा तो बिखरता चला गया। अपनी मंजिल से फिसला तो फिसलता चला गया। तू सब्र रख और देख मेरा हौसला, तू हारेगा, भले ही आज मुझे आगे ना बढ़ने दे। तू बस थोड़ा सा मुझे सँभलने दे।। तू भले अंधेरे चुन मेरे लिए, रोशनी मैं बनाऊँगा। तू काँटे बिछा राहों में मेरी, उनपे चलके मैं जाऊँगा। देखता हूँ कब तक दूर रहती है मुझसे मंजिल मेरी। मैं फिर से तैयार हूँ, तू मुझे जरा मैदान में तो उतरने दे। तू बस थोड़ा सा मुझे सँभलने दे।। आज गर्दिशों में हैं मेरे सितारे तो क्या हुआ। लोग भी आज मुझसे दूर हुए तो क्या हुआ। मैं मुश्किलों को चीरकर आऊँगा और छा जाऊँगा। फिर लोग भी आएंगे और भीड़ भी होगी। तू जरा ये काले बादल तो छँटने दे। तू बस थोड़ा सा मुझे सँभलने दे।। तू हर बार मुझसे यूँ रूठता है, कि मैं टूटकर बिखर जाता हूँ। जब देखता हूँ अपने अंदर का खालीपन, तो सहम जाता हूँ। फिर समेटता हूँ कुछ हिम्मत जो बाकी है मुझ में। मेरा नसीब फटा हुआ ही सही, तू जरा इसे सिलने तो दे। तू बस थोड़ा सा मुझे ...