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आज फिर से तू मुझे बिखरने दे

आज फिर से तू मुझे बिखरने दे। पत्ता-पत्ता टूटकर तू आज गिरने दे। मैं कल फिर आऊँगा, हर तिनका उठाकर आशियाना बनाऊंगा, तू बस थोड़ा सा मुझे सँभलने दे।। मैं टूटकर बिखरा तो बिखरता चला गया। अपनी मंजिल से फिसला तो फिसलता चला गया। तू सब्र रख और देख मेरा हौसला, तू हारेगा, भले ही आज मुझे आगे ना बढ़ने दे। तू बस थोड़ा सा मुझे सँभलने दे।। तू भले अंधेरे चुन मेरे लिए, रोशनी मैं बनाऊँगा। तू काँटे बिछा राहों में मेरी, उनपे चलके मैं जाऊँगा। देखता हूँ कब तक दूर रहती है मुझसे मंजिल मेरी। मैं फिर से तैयार हूँ, तू मुझे जरा मैदान में तो उतरने दे। तू बस थोड़ा सा मुझे सँभलने दे।। आज गर्दिशों में हैं मेरे सितारे तो क्या हुआ। लोग भी आज मुझसे दूर हुए तो क्या हुआ। मैं मुश्किलों को चीरकर आऊँगा और छा जाऊँगा। फिर लोग भी आएंगे और भीड़ भी होगी। तू जरा ये काले बादल तो छँटने दे। तू बस थोड़ा सा मुझे सँभलने दे।। तू हर बार मुझसे यूँ रूठता है, कि मैं टूटकर बिखर जाता हूँ। जब देखता हूँ अपने अंदर का खालीपन, तो सहम जाता हूँ। फिर समेटता हूँ कुछ हिम्मत जो बाकी है मुझ में। मेरा नसीब फटा हुआ ही सही, तू जरा इसे सिलने तो दे। तू बस थोड़ा सा मुझे

कहीं खो गया हूँ मैं

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  इस भीड़ भरी दुनिया में अपना वजूद तलाशता हूँ मैं। मैं हूँ कि नहीं हर वक़्त ये सोचता हूँ मैं। कभी लगता है कि कहीं खो गया हूँ । खोया हुआ ही सही, खुद को पाना चाहता हूँ मैं। इस दुनिया में मिले कई चेहरे मुझे। कुछ झूठ में सने तो कुछ मुखौटा लगाये दिखे मुझे। सब अपनी मर्ज़ी से मुझे समझने में लगे थे। ऐसा कोई ना था जो मुझसे समझ पाए मुझे। अंदर जो अँधेरा सा है वो अब अच्छा लगता है। इस अँधेरी खामोशी में जो अपनापन है वो सच्चा लगता है। रौशनी में भी क्या मिला, स्वार्थी लोग और गंदी सोच। खुद से ही बातें करना, अब अच्छा लगता है। कुछ टूटा सा कुछ बिखरा सा मैं खुद में ही खोया हूँ। इस दुनिया से दूर किसी कोने में अकेला ही सोया हूँ। लोग भी हैं साथ भी है लेकिन अंदर एक खालीपन सा है। मैं यूँ अंधेरे में किसी जुगनू की तरह खोया हूँ। ज़िन्दगी के इस सफ़र में ठहर सा गया हूँ मैं। मंज़िल भी है रास्ता भी है, पर कहीं बिछड़ सा गया हूँ मैं। समझ नहीं आता मैं कहाँ जाऊँ और क्यों जाऊँ। सब कुछ होकर भी कुछ ना होना, कुछ इस तरह उलझ सा गया हूँ मैं। अंदर ही अंदर मैं सिमटता जा रहा हूँ। दिन कट रहे हैं और मैं गिनता जा रहा हूँ। कभी वो दिन भी आएगा

देश की शान हो तुम...

हमारा अभिमान हो तुम, देश की शान हो तुम। तुम सरहदों पे खड़े हो, तिरंगे की आन हो तुम। तुम्हारे जागने से हम सोते हैं, तुम्हारे होने से ही हम होते हैं। हर मंदिर की आरती, हर मस्जिद की अज़ान हो तुम। हमारा अभिमान हो तुम, देश की शान हो तुम।। भूकंप से लेकर बाढ़ तक, बोरवेल के राड़ तक। मैदानों की आग से लेकर, कश्मीर के पथराव तक। याद तुम्हारी आती है, आतंक के आकाओं तक। तुम हो इस देश की जमीन, और आसमान हो तुम। हमारा अभिमान हो तुम, देश की शान हो तुम।। घर से दूर सरहद पर, देश की रक्षा को सदैव तत्पर। जाड़ा, गर्मी या बरसात, कर सकें ना कोई असर तुम पर। जाने किस मिट्टी के बने हो, सीना ताने यूँ खड़े हो। सैकड़ों दुश्मनों की टोली पर, आग से बरस पड़े हो। इस चाटूकारिता की नीति से, फर्क तुम्हें भी पड़ता होगा। छोड़ चलूँ मैं ये वनवास, मन तुम्हारा करता होगा। देश बड़ा है ये कहकर, फिर तुम खुद को समझाते होगे। अनुशासन की पराकाष्ठा पर, फिर तुम खुद को पाते होगे। अपमान तुम्हारा करते हैं वो, जिनकी रक्षा तुम करते हो। पत्थर का जवाब गोली से देते, तुम इतना सहन क्यों करते हो। एक बार तो छोड़ो उन्ह

मैं अकेला हूँ और अकेला चला जा रहा हूँ।

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मैं अकेला हूँ और अकेला चला जा रहा हूँ। था कारवाँ कभी साथ मेरे, पर आज कोई नहीं। थी जो महफ़िल कभी रोशन मुझसे, आज उसमें मैं नहीं। बने हालात कुछ ऐसे, कि खुद में सिमटने को मजबूर हुआ जा रहा हूँ। मैं अकेला हूँ और अकेला चला जा रहा हूँ।। वक्त का तकाज़ा था, कि जो अपने थे वो बिछड़ गए। मैं इस कोशिश में था कि गलती की गुंजाइश ना हो, और वो गलती करके निकल गए। मैं दूर खड़ा बस देखता रहा, वक्त के साथ हर कोई बदलता रहा। मैं आज भी वहीं हूँ, और लोगों को बदलते देख यूँ मुस्कुराता जा रहा हूँ। मैं अकेला हूँ और अकेला चला जा रहा हूँ।। आज थोड़ा बेबस, थोड़ा मजबूर हूँ मैं। अपनी मंजिल की तलाश में, खुद से ही बहुत दूर हूँ मैं। जाने कब खत्म होगी ये तलाश, मेरे मुकाम की। एक धुंधली सी उम्मीद लिए, मैं बस पिघलता जा रहा हूँ। मैं अकेला हूँ और अकेला चला जा रहा हूँ।। आज कुछ कमजोर हूँ, पर लाचार नहीं। बेशक मुझे जल्दी है सपनों की, पर किसी गुनाह का मैं तलबगार नहीं। रफ़्ता रफ़्ता ही सही , कभी तो आएगा वो खुशी का मन्ज़र। अपनी ख्वाहिशों को समेटे, बस चलता जा रहा हूँ। मैं अकेला हूँ और अकेला चला जा रहा ह

मुझे आज भी याद है तेरा साथ चलना

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मुझे आज भी याद है तेरा साथ चलना, लेकर कुछ बहाना घर से निकलना । वो गलियों से होकर चौपले पर पहुँचना। तेरे कॉलेज तक साथ-साथ चलना, मुझे आज भी याद है तेरा साथ चलना।। वो बस भी हमनवां थी, हम दोनों की गवाह थी। कुछ तेरे कुछ मेरे, पगले से यारों की एक टोली थी। एक सीट जो कभी ना बिछड़ी हमसे, सिर्फ अपनी थी। कैसे भूल जाऊँ मैं वो सब, कैसे भूल जाऊँ मैं तेरे संग बैठना। मुझे आज भी याद है तेरा साथ चलना।। वो तेरा भोलापन, वो तेरी सादगी। वो तेरा मुस्कुराना और यूँ खिलखिलाना। मैं खो चुका था तुझमें, और जी रहा था तुझको। वो सुनहरे दिन और गुलाबी रातें, वो खुद से बस तेरी बातें करना। मुझे आज भी याद है तेरा साथ चलना।। एग्जाम तो एक बहाना था, लखनऊ तक ही सही मगर तेरे साथ जाना था । तेरे साथ बिताए उन पलों का एहसास ही काफी था। और क्या चाहिए था बस तेरा साथ ही काफी था । मुझे हरदम भाता था तेरे संग यूँ घूमना, मुझे आज भी याद है तेरा साथ चलना।। मेरे लिए तेरा सबसे झगड़ना। अपने कॉलेज के टूर पे मुझे एडजस्ट करना । मेरी मार्कशीट के लिए क्लर्क से लड़ना। मेरे हर काम को यूँ तन्मयता से

हर उम्मीद मेरी धुआँ-धुआँ जली है

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हर उम्मीद मेरी धुआँ-धुआँ जली है। ना जाने मेरी किस्मत मुझे कहाँ ले चली है। मैं सँभला हूँ हर बार अपने दम पर यूँ गिर-गिर कर, अब तो लगता है मेरी किस्मत के दीये की लौ ही कम जली है। हर बार मेरे सपने कुछ यूँ बिखर जाते हैं। मैं समेटता हूँ किलो से और वो कुन्तलों से गिर जाते हैं। अब थक सा गया हूँ इन ख्वाबों को सहेजते-सहेजते, मैं सजाता हूँ इन्हें कई रंगों से, और ये बड़ी खामोशी से उजड़ जाते हैं। उम्मीद की एक लौ जलती है, और बुझ जाती है। किनारे पर आकर ही मेरी कश्ती, जाने क्यों पलट जाती है। मैं फिर से फँस जाता हूँ किस्मत के इस भँवर में, पिरोता हूँ सपनों को मैं जिस डोर में, वो एक झटके से टूट जाती है। ऐ किस्मत तू खामोश क्यों है, कुछ तो जवाब दे। की है मैंने जो इतनी मेहनत, उसका कुछ तो हिसाब दे। जानता हूँ तेरे भरोसे बैठना बेवकूफी है, लेकिन नींद से खाली मेरी इन रातों का कुछ तो हिसाब दे। निराशा के सागर में डूबा हूँ, और डूबता जा रहा हूँ। खो दिया है मैंने खुद को इस सफर में, और खोता जा रहा हूँ। मैं निकला था मंजिल की तलाश में एक कारवाँ लेकर, कुछ ने मुझे भुला दिया, औ

ऐ बारिश ज़रा जम के बरस

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ऐ बारिश जरा जम के बरस, मिलने दे इस पानी में मेरी आँखों का ये पानी। छिपा है सैलाब जो अंदर, वो आज टपकेगा बनकर खारा पानी। बहा ले जा संग अपने मेरे एहसासों की ये दुनिया, लिखूँ मैं नई ज़िन्दगी फिर से, और शुरू करूँ एक नई कहानी। धुलेंगी आज यादें कुछ पुरानी, उन्हें धुलने दे ज़रा। ना रोक इन बादलों को, तू बरसने दे ज़रा। बड़ी गहरी जड़ें जमाए बैठे हैं, मेरे दिल में कुछ एहसास। तू बना तूफान सा कोई मंज़र, और इन्हें उखड़ने दे ज़रा। फिसलने दे इन बूँदों को मेरे तन पर, पहुँचने दे रूह की गहराई तक। मैं खड़ा हूँ बाँहें फैलाये भीगने को तुझमें, तू सराबोर कर दे मुझे और भिगो डाल मेरी परछाईं तक। मैं तुझमें घुलने को तैयार बैठा हूँ, बस तू यूँ ही जारी रहना मेरे एहसासों की भरपाई तक। यूँ टुकड़ों में ना बरस, ऐसे तो मैं भी आधा-अधूरा सा हूँ। कभी ऊँचा उड़ता इन बादलों में, तो कभी गिरा-गिरा सा हूँ। आज तुझे अपने आगोश में समेट लूँ जी भर के, तू यूँ ना तरसा मुझे, मैं खुद इस सूनेपन से हारा-हारा सा हूँ। आज तू कुछ ऐसे बरस, कि मैं खुद को भूल जाऊँ। सराबोर कर दूँ खुद को तुझमें, और तेरी बाँहों में

ऐ वक़्त थम जा ज़रा

ऐ वक़्त थम जा जरा साँस तो लेने दे, हूँ घायल तेरी मार से जरा संभलने का मौक़ा तो दे । यूँ ही हार जाना फितरत में नहीं मेरी, पर हौसला समेटने का मौक़ा तो दे । ऐसा नहीं कि मैंने तेरी कद्र ना की, मैं उलझा रहा बस तेरे दिए सवालों में। ढूँढता रहा जवाब मैं बड़ी शिद्दत से, घूमता रहा ख़यालों में। कुछ सवाल सुलझे तो कुछ अनसुलझे हैं अभी। लगता है तेरा कहर कुछ बाकी है अभी। बेशक तू क्रूरता की हद पार कर दे, मगर याद रखना मुझमें कुछ जान बाकी है अभी। तेरे ज़ुल्मो सितम से भी कुछ तो जाना मैंने, कौन अपना है कौन पराया ये पहचाना मैंने। चला था कुछ अरमां लिए मैं दिल में उस भीड़ से अलग। सफर भी मुश्किल था मेरा, थीं मंजिलें मेरी सबसे अलग। तूने ऐसी करवट बदली मैं रह गया पीछे, ना पा सका मुकाम अपना जो सोचा था सबसे अलग। इस कदर इन अंधेरो में खो जाऊँगा ये तो मैंने सोचा ना था। ढलेगा दिन और ढलता ही रहेगा ये तो मैंने सोचा ना था। जारी है तेरा सितम आज भी मुझपे, और ये यूँ जारी रहेगा ये तो मैंने सोचा ना था। वक्त बेवक्त ही सही ऐ वक्त, कभी मेरी भी सुना कर। तू है तो मेरे आस पास लेकिन है कहाँ, परेशान

शायद तेरे जाने की वजह है

क्यों आज फिर से खामोश हूँ मैं, शायद तेरे जाने की वजह है। एक अजीब सी उदासी छायी है, शायद तेरे जाने की वजह है। जुड़ा नहीं मैं आज खुद से ही, अंदर कुछ टूट रहा है शायद। टूट कर बिखर रहा है आशियाना मेरा, कोई तूफान उठा है शायद। ना रोक सका मैं उदासी भरे उस लम्हे को, तुझसे कुछ उम्मीद थी शायद। एहसास तुझे भी रहा होगा मेरे जज़्बातों का, ये मेरी भूल थी शायद। कुछ यूं गुजरती हैं शामें मेरी, अब तेरे जाने के बाद। गुमसुम सा रहता हूँ, है बस तेरी यादों का साथ। कुछ खोया सा कुछ डूबा सा, तेरी यादों के समुन्दर में। लिए किनारे की उम्मीद कुछ यूँ बैठा हूँ। लौट कर आएगी फिर वो कश्ती, इंतज़ार किये बैठा हूँ। खामोशी भरी रात, उसपे ये बारिश का पानी। आसमाँ भी सुना रहा हो मानो कोई कहानी। तेरा भी कोई अपना गया है दूर शायद, जो यूँ रोये जा रहा है। आ बांट ले गम अपना, क्यों आंसू पे आंसू गिराए जा रहा है । आ मिल बैठें कुछ देर, इस भीगे से मौसम में। कुछ तू सुना अपनी, कुछ मैं सुनाऊँ। बहाना भी है आंसुओं को छुपाने का, कुछ तू भीगा सा है कुछ मैं भीग जाऊँ। यूँ ही चलती रहे ये रात, दिन में कुछ अजीब सा लगत

यही किस्मत है तेरी

वही सुबह वही सबेरा, सब कुछ वही पुराना है क्यों निकलता है सूरज, अगर वही सब दोहराना है दिन भर क्या करना है, कुछ तो कमाना है रुखा-सूखा ही सही, खाकर शहर तो जाना है अगर मिल गई मजदूरी, तो खुशी खुशी घर जायेंगे आधा सामान में खर्च कर देंगे, और आधे का उधार चुकायेंगे इन्द्रदेव भी रुष्ट हुए हैं, खाद की किल्लत है भारी खेती होती राम भरोसे, क्या हुआ किस्मत को तेरी सुबह से लेकर शाम तक, इस कङकती धूप में तुम अपने बैलों के संग, दिन भर मंडराते रहते हो नंगे रहते गर्मी सहते, तब दो रोटी खा पाते हो दाम बढ़ाकर तुम्हारी फसल के, सरकार देती सहारा है लेकिन अगले ही पल, भाव देख कर दाल-आटे के लगता नहीं , यह सुख भी तुम्हारा है गरीबी,बदहाली से तंग है, फिर भी पाँचवें की तैयारी है कहता है ये मेरे वश में नहीं, ये तो अल्लाह की मरज़ी है मँहगाई-मँहगाई करते-करते, तू चिल्लाता रह जायेगा रोते-रोते इस दुनिया से, तू विदा हो जायेगा कोई नहीं जो सुन ले तेरी , शायद यही किस्मत है तेरी