यही किस्मत है तेरी
वही सुबह वही सबेरा, सब कुछ वही पुराना है
क्यों निकलता है सूरज, अगर वही सब दोहराना है
दिन भर क्या करना है, कुछ तो कमाना है
रुखा-सूखा ही सही, खाकर शहर तो जाना है
अगर मिल गई मजदूरी, तो खुशी खुशी घर जायेंगे
आधा सामान में खर्च कर देंगे, और आधे का उधार चुकायेंगे
इन्द्रदेव भी रुष्ट हुए हैं, खाद की किल्लत है भारी
खेती होती राम भरोसे, क्या हुआ किस्मत को तेरी
सुबह से लेकर शाम तक, इस कङकती धूप में
तुम अपने बैलों के संग, दिन भर मंडराते रहते हो
नंगे रहते गर्मी सहते, तब दो रोटी खा पाते हो
दाम बढ़ाकर तुम्हारी फसल के, सरकार देती सहारा है
लेकिन अगले ही पल, भाव देख कर दाल-आटे के
लगता नहीं , यह सुख भी तुम्हारा है
गरीबी,बदहाली से तंग है, फिर भी पाँचवें की तैयारी है
कहता है ये मेरे वश में नहीं, ये तो अल्लाह की मरज़ी है
मँहगाई-मँहगाई करते-करते, तू चिल्लाता रह जायेगा
रोते-रोते इस दुनिया से, तू विदा हो जायेगा
कोई नहीं जो सुन ले तेरी , शायद यही किस्मत है तेरी
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